Thursday, August 16, 2007

महिलाओं की आकांक्षाओं के साथ गद्दारी करने वाली

यूपीए सरकार होश में आओ!

ऐपवा की महिला अदालत, 8 अगस्त 2007, जंतर मंतर, दिल्ली

बढ़ती बेरोज़गारी, महंगाई और विस्थापन, छिनते जाते महिला अघिकार, महिलाओं पर बढ़ता राज्य दमन, बदस्तूर जारी क्रूर सामाजिक हिंसा, महिला आरक्षण पर लगातार चल रही वादाखिल़ाफ़ी - कौन है इसका ज़िम्मेदार? जवाब दो, जवाब दो!
प्रिय बहनो,
हमारे देश को आज़ाद हुए अब साठ साल पूरे हो रहे हैं। यूपीए सरकार का दावा है कि राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना के तहत महिलाएं रोज़गार में आ रही हैं और उन पर 0.8 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। पर आंकड़ें बताते हैं कि 33 फीसदी तो छोड़ दीजिए, 15 फीसदी महिलाओं को भी ग्रामीण क्षेत़्रों में रोज़गार नहीं मिला और अनुदान में व्यापक धांधली चल रही है। जहां महिलाएं लड़ी हैं, वहीं जॉब कार्ड और मजदूरी मिली है। बाकी जगह ये योजना भ्रश्टाचार और महिला विरोधी रुख से ग्रस्त है। भाहरी उद्योग धंधे ठप्प पड़ रहे हैं और महिलाओं को असंगठित, ठेका मज़दूरी और कैजुअल लेबर की ओर धकेला जा रहा है। महिलाओं के लिए चल रही सरकारी योजनाओं में, जैसे आईसीडीएस की आंगनबाड़ी कर्मचारी और एनआरएचएम में एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं तथा शिक्षामित्रों आदि के लिए उचित मानदेय तक नहीं है। लघु ऋण (माइक्रो क्रेडिट) और स्वरोज़गार के लिए अन्य प्रकार के ऋण आम महिलाओं के लिए दूभर हैं। तब औरतों को आर्थिक सुरक्षा कैसे मिलेगी?

महिलाओं पर बढ़ती हिंसा

महिलाओं पर बढ़ती हिंसा न सिर्फ बढ़ी है, बल्कि वीभत्स रूप ले रही है। राज्य दमन उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर आंध्रा और जम्मू-क मीर में बदस्तूर जारी है। अफ्स्पा के खिल़ाफ आंदोलन चलाने के बावजूद उसे वापस नहीं लिया जाए। खेत मज़दूर और श्रमिक आंदोलन में महिलाओं को दमन के लिए नि ााना बनाया जा रहा है। सिंगूर की तापसी मल्लिक और नंदीग्राम की भाहीद औरतें इसकी ताज़ा उदाहरण हैं। नक्सलवादी के नाम पर कुछ भी जायज ठहराया जाता है और काले क़ानूनों का बेधड़क इस्तेमाल होता है। राजनेताओं, गुंडों, पुलिस और असामाजिक तत्वों को सेक्स ंस्कैंडल रचने, बलात्कार करने या गऱीब औरतों के शोषण की खुली छूट मिली हुई है। आज राजधानी दिल्ली बलात्कार की राजधानी कहलाने लगी है। पर सरकार मौन है। कार्यस्थल पर यौन शोषण विरोधी विधेयक ठंडे बस्ते में पड़ा है। घरेलू हिंसा विधेयक लागू ही नहीं होता दिखता। उल्टे सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज उत्पीड़न को छूट दे दी है। जातीय और सांप्रदायिक हिंसा में अभी औरतों को भीशण यातनाएं झेलनी पड़ रही हैं। मुख्यमंत्रियों में होड़ लगी है- इससे भी औरतों की जिंद़गी तबाह है।

महिला आरक्षण की मृग मरीचिका

महिलाओं के राजनीतिक स ाक्तीकरण का कितना ही दावा यूपीए सरकार करे, असलियत तो ये है कि महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पे ा तक करने की हिम्मत सरकार में नहीं है। एक तरफ पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को हाशिये पर रखने की साज़िश हो रही है, तो दूसरी ओर वे जब लड़ती हैं, तो उन्हें सज़ा दी जाती है। क्या महिलाओं को राजनीतिक आर्थिक रूप से कमज़ोर बना कर उन्हें समाज में आगे लाया जा सकता है? क्या आज सरकार जिस विकास के मॉडल को लेकर चल रही है, उसमें औरतें सुरक्षित रह सकती हैं? नहीं!

हम क्या करें?

हम महिलाओं का इस सरकार से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। अब समय आ गया है कि देश भर की औरतों के भीतर बढ़ रहे आक्रोश को हम संगठित रूप दे सकें। आइए, हम मिल कर महासंग्राम शुरू करें- इस सरकार के खिल़ाफ़ और उसे मज़बूत कर टिकाये रखने वाली पितृसत्तात्मक महिला विरोधी, जनविरोधी ताक़तों के खिल़ाफ़ इनसे लोहा लेकर इन्हें नष्‍ट किये बिना हमारी मुक्ति संभव नहीं है।

महिलाओं की ज़िंदगी सुरक्षित करो! महिलाओं पर हिंसा बंद करो! महिला आरक्षण विधेयक तुरंत पारित करो!

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