Sunday, August 19, 2007
ऐप्वा तसलीमा के लिए नागरिकता कि माँग करता है
ऐप्वा ने एम् बी टी और टीपू सुलतान मस्जिद के शाही इमाम द्वारा जारी फतवे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि लोकतंत्र में किसी को भी यह अधिकार है कि वह अपने विचार रखे और उन्हें अभिव्यक्त करे। तसलीमा ने यही किया है। वह हर प्रकार के कट्टरपंथी व दकियानूसी विचार के खिलाफ हैं चाहे वह किसी भी धर्म में हो । जो लोग उनका विरोध कर रहे हैं वे हिंदुत्ववादी संगठनों के हाथों मे खेल रहे हैं। उनकी ऐप्वा तीव्र भर्त्सना करता है।
ऐप्वा महासचिव कुमुदिनी पति ने कहा कि आन्ध्र प्रदेश सरकार ने जिस तरह तसलीमा के खिलाफ पहले प्राथमिकी दर्ज़ की और मुस्लिम कट्टरपंथियों के प्रति नरम रुख अपनाती रही, उससे इनका मनोबल बढ़ गया और वे और भी ज्यादा हिम्मत कर असीम मुद्रा के पुरस्कार कि घोषणा कर बैठे, जिससे अब तसलीमा पर खतरा वास्तविक बन चुका है। भारत सरकार को चाहिऐ कि तसलीमा को भारत कि नागरिकता प्रदान करे और उन्हें सुरक्षा व आजादी के साथ कोलकता मे रहने का प्रबंध करे। ऐसा यदि नहीं किया जाता, तो हर प्रकार के कट्टरपंथी तत्वों को मौका मिल जाएगा कि महिला आन्दोलन और सेकुलर आन्दोलन को वे छिन्न- भिन्न करें। सुश्री पति ने अपील की कि सभी महिला संगठन व प्रगतिशील लोग तसलीमा के पक्ष मे खडे हों.
Friday, August 17, 2007
ऐपवा महिला अदालत
Thursday, August 16, 2007
महिलाओं की आकांक्षाओं के साथ गद्दारी करने वाली
ऐपवा की महिला अदालत, 8 अगस्त 2007, जंतर मंतर, दिल्ली
बढ़ती बेरोज़गारी, महंगाई और विस्थापन, छिनते जाते महिला अघिकार, महिलाओं पर बढ़ता राज्य दमन, बदस्तूर जारी क्रूर सामाजिक हिंसा, महिला आरक्षण पर लगातार चल रही वादाखिल़ाफ़ी - कौन है इसका ज़िम्मेदार? जवाब दो, जवाब दो!
प्रिय बहनो,
हमारे देश को आज़ाद हुए अब साठ साल पूरे हो रहे हैं। यूपीए सरकार का दावा है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना के तहत महिलाएं रोज़गार में आ रही हैं और उन पर 0.8 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। पर आंकड़ें बताते हैं कि 33 फीसदी तो छोड़ दीजिए, 15 फीसदी महिलाओं को भी ग्रामीण क्षेत़्रों में रोज़गार नहीं मिला और अनुदान में व्यापक धांधली चल रही है। जहां महिलाएं लड़ी हैं, वहीं जॉब कार्ड और मजदूरी मिली है। बाकी जगह ये योजना भ्रश्टाचार और महिला विरोधी रुख से ग्रस्त है। भाहरी उद्योग धंधे ठप्प पड़ रहे हैं और महिलाओं को असंगठित, ठेका मज़दूरी और कैजुअल लेबर की ओर धकेला जा रहा है। महिलाओं के लिए चल रही सरकारी योजनाओं में, जैसे आईसीडीएस की आंगनबाड़ी कर्मचारी और एनआरएचएम में एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं तथा शिक्षामित्रों आदि के लिए उचित मानदेय तक नहीं है। लघु ऋण (माइक्रो क्रेडिट) और स्वरोज़गार के लिए अन्य प्रकार के ऋण आम महिलाओं के लिए दूभर हैं। तब औरतों को आर्थिक सुरक्षा कैसे मिलेगी?
महिलाओं पर बढ़ती हिंसा
महिलाओं पर बढ़ती हिंसा न सिर्फ बढ़ी है, बल्कि वीभत्स रूप ले रही है। राज्य दमन उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर आंध्रा और जम्मू-क मीर में बदस्तूर जारी है। अफ्स्पा के खिल़ाफ आंदोलन चलाने के बावजूद उसे वापस नहीं लिया जाए। खेत मज़दूर और श्रमिक आंदोलन में महिलाओं को दमन के लिए नि ााना बनाया जा रहा है। सिंगूर की तापसी मल्लिक और नंदीग्राम की भाहीद औरतें इसकी ताज़ा उदाहरण हैं। नक्सलवादी के नाम पर कुछ भी जायज ठहराया जाता है और काले क़ानूनों का बेधड़क इस्तेमाल होता है। राजनेताओं, गुंडों, पुलिस और असामाजिक तत्वों को सेक्स ंस्कैंडल रचने, बलात्कार करने या गऱीब औरतों के शोषण की खुली छूट मिली हुई है। आज राजधानी दिल्ली बलात्कार की राजधानी कहलाने लगी है। पर सरकार मौन है। कार्यस्थल पर यौन शोषण विरोधी विधेयक ठंडे बस्ते में पड़ा है। घरेलू हिंसा विधेयक लागू ही नहीं होता दिखता। उल्टे सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज उत्पीड़न को छूट दे दी है। जातीय और सांप्रदायिक हिंसा में अभी औरतों को भीशण यातनाएं झेलनी पड़ रही हैं। मुख्यमंत्रियों में होड़ लगी है- इससे भी औरतों की जिंद़गी तबाह है।
महिला आरक्षण की मृग मरीचिका
महिलाओं के राजनीतिक स ाक्तीकरण का कितना ही दावा यूपीए सरकार करे, असलियत तो ये है कि महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पे ा तक करने की हिम्मत सरकार में नहीं है। एक तरफ पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को हाशिये पर रखने की साज़िश हो रही है, तो दूसरी ओर वे जब लड़ती हैं, तो उन्हें सज़ा दी जाती है। क्या महिलाओं को राजनीतिक आर्थिक रूप से कमज़ोर बना कर उन्हें समाज में आगे लाया जा सकता है? क्या आज सरकार जिस विकास के मॉडल को लेकर चल रही है, उसमें औरतें सुरक्षित रह सकती हैं? नहीं!
हम क्या करें?
हम महिलाओं का इस सरकार से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। अब समय आ गया है कि देश भर की औरतों के भीतर बढ़ रहे आक्रोश को हम संगठित रूप दे सकें। आइए, हम मिल कर महासंग्राम शुरू करें- इस सरकार के खिल़ाफ़ और उसे मज़बूत कर टिकाये रखने वाली पितृसत्तात्मक महिला विरोधी, जनविरोधी ताक़तों के खिल़ाफ़ इनसे लोहा लेकर इन्हें नष्ट किये बिना हमारी मुक्ति संभव नहीं है।
महिलाओं की ज़िंदगी सुरक्षित करो! महिलाओं पर हिंसा बंद करो! महिला आरक्षण विधेयक तुरंत पारित करो!
Saturday, August 4, 2007
A mahila panchayat yesterday flayed the administration
for not pressing charges against Swami Shankaranand
Bhuriwale, who is accused of allegedly molesting a
woman, Savita Rani of
beating her and her brother in a dera complex on July
25. Panchayat members included Iqbaal Kaur Udaasi,Dr.
Jasbir Kaur, Kanwaljit, Paramjit Kaur and Kumudini
Pati.
The police had registered a case against him and some
of his followers after tension that lasted a whole
day. About 500 persons, including large number of
women, belonging to Mor Karima village, had laid siege
on the Dera for nearly seven hours on the day to
protest the incident. But electric wires were wound
around the iron fencing and gate to prevent entry of
protesters and police.
On the 3rd of August, scores of women activists of the
All India Progressive Women Organisation led by its
general secretary Kumundini Pati assembled in front of
the district administrative complex and warned that in
case the self-styled swami was not brought to book
they would be forced to take direct action against
him. Ms Pati said that the case of Baba Ram Rahim of
Dera Sachcha Sauda had been handed over to the CBI
because of media attention. She said that AIPWA was
not against any particular religious sect and had been
up in arms against the Shankaracharya of Puri or even
Shahi Imam Bukahri on earlier occasions, protesting
their anti-woman attitude. But religion cannot be used
for exploiting young girls and women and if this is
being done, the Government must bring the exploiters
to book. She said that a CBI inquiry should be
insituted against the goings on in the Dera Talwandi
Khurd of
receiving political patronage and large amounts of
money as well as aid from foreign countries, which
should also be put under scrutiny.
A former security guard at the dera, a retired
armyman, Mihmal Singh, took the mike and said although
he knew of many wrongdoings; more skeletons would
tumble out if the case was handed over to the CBI or
some other investigating agency. He was prepared to
depose against the Dera Chief as he has been an
eyewitness to the incidents of sexual abuse and
beating of women residing in the ashram of the Dera.
He said he was so disgusted at the activities at the
dera that he along with his family shifted out and
underwent baptism to become Sikh.
Pati said it was a shame that such deras enjoyed
political patronage. She said in case the government
does not do anything, the organisation will chalk the
future course of action at the all-India level women’s
rally to be held in front of the Parliament on August
8.
She also handed over a memorandum to SDM (W) J.S.
Grewal. Others who spoke on the occasion included
former MLA Tarsem Jodhan, Paramjit Kaur Khalsa, Birpal
Kaur, Jasbir Kaur and Kanwaljit Khanna.
Charges have been filed by the Central Bureau of
Investigation against the Dera Sacha Sauda chief
Gurmeet Ram Rahim Singh for rape and murder.
The Dera chief was surrounded by controversies and he
suppressed them through political manipulations and
power games. In 2001, a girl living in the Dera with
her brother wrote to some newspapers alleging rape, it
said.
The girl appealed to the National Human Rights
Commission. But as the girl could not present herself
due to threats to her life, the matter could not be
pursued. The girl’s brother and the editor of a
newspaper, who raised the issue were murdered.